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"पथ आंगन पर रखकर आई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,<br>
 
पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,<br>
 
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। <br><br>
 
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। <br><br>

19:17, 24 जून 2009 का अवतरण

पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई।

झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,
कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।

लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,
हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।

घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,
प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।