भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परशुराम / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:20, 5 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड्ड अल्पवयस छी हम सभ, नइँ देखि सकब अपन शवयात्रा
आ,
एहि मृत, दुर्गन्धिमय रात्रिमे बढ़ि गेल अछि इच्छादिक मात्रा
आ,
ओछान पर मैल चद्दरि अछि, हम छी फाटल सीरकमे बन्द
आ,
गढ़ि रहल अछि तइओ आत्मा प्रकाश, किरण सूर्य्यक नव छन्द
प्राण अंकुर पर आस्था अछि
मोनक माटि अछि कुमारि
एहि माटिसँ जनमत नब परशुराम
कथमपि नइँ आब कोनो नारि