भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पसीना तक नहीं आता, तो ऐसी ख़ुश्क तौबा क्या / यगाना चंगेज़ी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:55, 12 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: पसीना तक नहीं आता, तो ऐसी ख़ुश्क तौबा क्या? नदामत वो कि दुस्मन को ...)
पसीना तक नहीं आता, तो ऐसी ख़ुश्क तौबा क्या?
नदामत वो कि दुस्मन को तरस आ जाये दुश्मन पर॥
उस तरफ़ सात आसमाँ और इस तरफ़ इक नातवाँ।
तुमने करवट तक न ली दुनिया को बरहम देख कर॥
खु़दा जाने अज़ल को पहले किस पर रहम आयेगा?
गिरफ़्तारे क़फ़स पर या गिरफ़्तारे नशेमन पर॥