भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहली बूँद के इंतजार में / रश्मि शर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 4 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} <poem> बारि‍श की प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारि‍श की
पहली बूंद के इंतज़़ार में हूँ
जब उठेगी धरा से
सोंधी खुशबू
घर के सामने वाले तालाब में
बूँदों का नर्तन होगा
मैं हथेलि‍यों में भर लूंगी बूँदें
हवा में लहराते दुपट्टे को
बांध, भीगी घास में
दौड़ पडूँगी, फुहारों संग
काले मेघों को दूँगी न्‍योता

अब यही बस जाने का
फाड़कर कापि‍यों के पन्‍ने
बनाऊँगी काग़ज की कश्‍ती
नीचे वाली बस्‍ती में
बॉंस के झुरमुट तले रूक जाऊॅँगी
वहीं तो आता है
गॉंव की गलि‍यों का सारा पानी
कश्‍ती में बूँदो से नन्‍हें सपने
भर कर बहा दूँगी
मैं तब तक देखती रहूँगी कश्‍ती को

जब तक बारि‍श डुबो न दे
या हो न जाए
इन ऑंखों से ओझल
गरजते बादल की आवाज़
सुन रही हूँ
बारि‍श की
पहली बूँद के इंतज़ार में हूँ।