भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पास हमारे / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:57, 6 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजनाथ श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपनेपन की
सोंधी खुशबू
पास हमारे है
मेरे घर का
मंदिर होना
जिसमें देव रहें
नई पुरानी नेह कथाएँ
मिलकर लोग कहें
आखर –आखर
ऋचा प्रेम की
पास हमारे है
सुख-दुख सारे
मिलकर घर ने
साथ-साथ ढोये
पूरे घर ने
बीज प्यार के
मिलजुल कर बोये
क्यारी-क्यारी
नई पौध अब
पास हमारे है
हँसते फूलों
की किलकारी
घर भर में पसरी
सुबह शाम
तक रहें महकते
घर आँगन देहरी
कर्म, त्याग की
नेह कथा भी
पास हमारे है