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पा-बा-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन / परवीन शाकिर

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पा-ब-गिल<ref>दलदल में फंसे हुए पाँव</ref> सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
दस्तबस्ता<ref>हाथ बांधे हुए</ref> शहर में खोले मेरी जंज़ीर कौन

मेरे सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ़ देख ले
कर रहा है मेरी फ़र्द-ए-जुर्म<ref>आरोप पत्र</ref> को तहरीर कौन

आज दरवाज़ों पे दस्तक जानी पहचानी सी है
आज मेरे नाम लता है मिरी ताज़ीर<ref>दंड</ref> कौन

कोई मकतल को गया था मुद्दतों पहले मगर
है दर-ए-ख़ेमा पे अब तक सूरत-ए-तस्वीर कौन

मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
बेरिदाई को मिरी फिर दे गया तशहीर<ref>बदनाम करना </ref> कौन

शब्दार्थ
<references/>