भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिया फूलै पलास / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:29, 27 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुरं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिया फूलै पलास।
गाछी के रग-रग सें फुटलै हुलास
पिया फूलै पलास।

कुरी-कुरी गोछयैलोॅ गाछी के ठारी पर
जेना सुहागिन के लाल पाड़ साड़ी पर
लागलोॅ छै ग्वालिन के गोकुल में रास
पिया फूलै पलास।

है तेॅ परासोॅ के जंगल ही दहकै
एक-एक गाछोॅ के ठार-ठार लहकै
आगिन लगैनें छै चैतोॅ के मास
पिया फूलै पलास।

है रङ धधाय केॅ जे उठलोॅ छै आगिन
केना केॅ बचतै वियोगी-वियोगिन
चिकरै छै पपीहो सब दैकेॅ अरदास
पिया फूलै पलास।