भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुरातत्ववेत्ता / भाग 6 / शरद कोकास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 1 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह=पुरात...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मरुस्थल में लापता सम्राट कम्बाइसिस की सेना का एक सैनिक
पानी से खाली चमड़े की थैली तक पहुँचने की कोशिश में
दम तोड़ देता है जैविक इच्छाओं की तपती रेत पर
गला तर करने के लिए उसके बचे हुए साथी
ख़ुदगर्ज़ी के चाकू से उसका पेट चीर कर पीते हैं पेशाब
बेमुरव्व्त रेत सोख लेती उनकी देह का सारा जल
जस का तस छोड़ देती उन्हें एक समयचक्र में

वहीं कहीं तीन हज़ार साल पुराना एक बच्चा
ऊन के कम्बल में लिपटा है ममी बनकर
वह हर रात उनके तम्बू के भीतर अपनी माँ तलाशता है
और प्रतिमाओं में बुद्ध की माँ
जो ठीक एथेंस की किसी घरेलू औरत की तरह दिखाई देती है
उसकी लोरी में बर्बर कबीले डोरियन की कहानियाँ हैं

( प्राचीन ग्रीक वासियों को आयोलियन Aeolians, अखनीयन Achaeans, Ionians यवन अथवा डोरियन भी कहा जाता है।एथेंस के निवासी एथेनी कहलाते हैं।डोरियन का उल्लेख होमर के महाकाव्य ओडिसी में भी है। ये क्रीत द्वीप के निवासी थे और इनकी संस्कृति कबीलाई थी।डोरियन और आयोनियंस के बीच प्रसिद्ध पेलोपोनेशियन युद्ध हुआ था।)

कुछ स्त्रियाँ जिनके सर पर डायनोसिस सवार है
उनके होठों पर बच्चों और जानवरों का खून लगा है
विकलांग तूतनखामन का हत्यारा बूढ़ा पुजारी
अपनी ही क़ब्र में उकेरे चित्रों में प्रायश्चित की मुद्रा में है
क़ब्र का पत्थर हटाते ही दिखाई देती है चेतावनी
भस्म कर दिए जाओगे हमारी आत्माओं के हाथों
जला दिए जाओगे रेगिस्तान की दहकती रेत में
ख़बरदार, जो कोशिश भी की हम तक पहुँचने की

( तूतनखामन यह मिस्त्र का फ़राओ शासक था जिसने 1332 से 1323 ईसापूर्व तक राज्य किया।1922 में पुरातत्ववेत्ताओं ने तूतनखामन के मकबरे की खोज की, उसका विश्वप्रसिद्ध मुखौटा इजिप्त के संग्रहालय में है।कहते हैं कि उसकी हत्या उसके ही पुजारी द्वारा की गई थी।)

(डायनोसिस या डायोनाइसिस प्रसिद्ध यूनानी देवता का नाम है जिसका सम्बन्ध मदिरा, मदिरा निर्माण, अंगूर की फसल व धार्मिक आनंदानुभूति से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि डायोनाइसिस की उपासक स्त्रियाँ जिन्हें maenads कहते थे, सिरपेचे की शराब का सेवन करती थीं और बच्चों और जानवरों को फाड़ कर उनका रक्तपान करती थीं।रॉबर्ट ग्रेव्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक The Greek Myth में इनका उल्लेख किया है।)

दुनिया जो अपने नियमों से भीतर या बाहर है
जिसके हस्तक्षेप में हैं तथ्य मिट जाने के ख़तरे
उन्हें डराती है
डरावनी फिल्मों में इस्तेमाल किए गए मुखौटे पहन कर
जैसे कि माँ डराती है बच्चों को
चुप हो जा नहीं तो भूत पकड़कर ले जाएगा
फ़िर जीवन भर डरते हैं वे अपने ही अतीत से
और उस मनुष्य के अतीत से
जिसके लिए वह स्वयं रहस्य था
यहीं उपजता है अनदेखे पर विश्वास
जिससे छुटकारा पाना उतना ही मुश्किल
जितना देख पाना अपने आप को अपने बाहर से

अफ़वाहों की गोद में पलते हैं अभिशाप
नहीं अटकती मगर उनमें पुरातत्ववेताओं की साँस
वे नहीं होते भयभीत इस युग या उस युग के भूत से
न ही ख़ौफ़ खाते जीवितों से
वे नहीं डरते उस वर्तमान से
जिसके हाथों में उनकी और अतीत की रपट है
कि हर सफ़ेद झूठ का कालापन वे जानते हैं
किसी भी कीमत पर कोशिश नहीं करते उसे बदलने की
सच के किसी प्रचलित लुभावने रंग में

फ़िर भी इस बात में नहीं कहीं कोई दो राय
कि जो जैसा दिखाई देता है बिलकुल वैसा नहीं होता
अपनी बनावट में पारदर्शी होने का भरम लिए
 
नतीजों पर परत चढ़ी है अभी संशय की
अभिव्यक्ति में सिर्फ़ होंठ हिलते कि आवाज़ गुम
सत्य की छटपटाहट अलग
जिसे क़ैद कर लिया है असत्य ने धोखे से अपनी गुफा में
और घूम रहा है बाहर उसके प्रतिरूप लिए
प्रतीक्षा में वह कि कोई पुरातत्ववेत्ता आए
और हटाए दरवाज़े पर रखी वर्जना की चट्टान
जिसके मौन में भी सत्य की स्थापना हो
चीखकर कहे हवाओं में चाहे वो लिख कर बताए
कि ज़रूरत की तीन ईंटों में जुड़ी चौथी ईंट
साज़िश की है और ये चूल्हे हैं यज्ञवेदी नहीं
कि सिर्फ़ वेद नहीं हैं दुनिया के प्राचीनतम ग्रंथ
और सभी आधुनिक अविष्कारों के बीज इनमें खोजना
छोड़ देना है अपना दिमाग़ किसी बंद किताब में

वे उन लोगों में हों
जो नदी को देखें तो सिर्फ़ प्यास के बारे में नहीं सोचें
उसकी कोख में छुपे पत्थरों पर नहीं देखें
स्वर्ग से उतरे देवताओं के पदचिन्ह
कि यह सिर्फ़ बहते धारों का कमाल है
या किसी शिल्पी के जेहन में उतरे ख़याल

पत्थर की आँख से जो नहीं पढ़ें साहित्य
जिसमें लिखी हों बातें मन को भरमाने वाली
कि वाल्मीकि की जिव्हा से निकली थी पहली कविता
और जो बिना पंखों के उड़ा था विजय के आकाश में
वही पुष्पक था दुनिया का पहला विमान
एक देवभाषा थी जो अलग थी लोकभाषा से
और कोई किताब थी ईश्वरकृत जो मनुष्य ने नहीं लिखी थी

बेहतर हो समय के आदिम मंच पर अभिनय कर जाने वाले
किसी काल्पनिक पात्र के पक्ष में वे नहीं जुटाएँ प्रमाण
वासनाओं के वर्तमान में हाज़री लगाने के लिए
घोड़े गधे और बैल को अवांछित कालखंड में न दर्ज करें
कि प्रजाति में एक होते हुए भी जाति में अलग हैं ये
मनुष्य के साथी रहे हैं उसके सुखों की तरह

भविष्य की स्मृति में युगपुरुष होने की चाहत में
मनुष्य के किसी संघर्ष समय को अंधकार युग न कहें
और शून्यकाल में दरबारियों का मन बहलाने के लिए
प्रस्तर ताम्र लौह कांस्य युग के तारतम्य में नहीं कहें
इतिहास के किसी युग को स्वर्णयुग

पूजन के किसी अर्थ में वे नहीं पूजें कोई जड़ इंसान
ज़मीन से निकले हर पत्थर को विश्वास में नहीं गढ़ें
नहीं जड़ें अंगूठी में ग्रहों की खुशी के लिए
ढूँढें उस संस्कृति को जो शब्द ही गुम है शब्दकोश में
अन्यथा नहीं करें किसी संस्कृति पर झूठा अभिमान

कठिन परीक्षा है सचमुच वहाँ भी जहाँ जीवन परीक्षा है
और सफलता के मायने हर शख़्स के लिए अलग
बशर्ते कि वह प्रतियोगिता न हो
कि उसमें साफ गुंजाइश है
झूठ मक्कारी और धोखाधड़ी की

वही मनुष्य होंगे और वही पुरातत्ववेत्ता
जो नहीं पालेंगे दंभ सजीवों में सबसे आदिम होने का
नहीं खोजेंगे विस्मृति के मलबे में पूर्वाग्रहों के अवशेष
किसी देश को यह हक़ नहीं देंगे कि वह
पृथ्वी पर जन्म लेने वाले पहले मनुष्य को
अपनी नागरिकता प्रदान करे
जो नहीं स्थापित करेंगे अपनी हठधर्मिता में
दुनिया की कोई मान्यता अंतिम मान्यता के रूप में
वक़्त उन्हीं की शिनाख़्त पुरातत्ववेत्ता के रूप में करेगा

अब दुविधा के लिए नहीं कोई जगह शेष यहाँ
कि विरोध के विकल्प में भी यहाँ विरोध है
चैन इसी में आनेवाली पीढ़ियों का
बावज़ूद अपनी पराजय और नुकसान के
सामना करें मज़बूत होकर अपने अतीत का
समझें कि नानी की कहानी दिलकश ही सही
घटनाओं के कई पेंचोख़म है उसमें
और फ़र्क है इतिहास और कहानी में यही
जो खुली आँख और बंद आँखों में होता है

संभव है हज़ार साल बाद दुनिया ऐसी न दिखाई दे
लुप्त हो जाएँ इच्छाएँ और कुछ सभ्यताएँ
शब्दों में प्रकट अब तक के सारे ख़तरे सच हो जाएँ
तब भी बचा रहेगा अतीत इसी शक्ल में
अपनी पूरी ताकत के साथ
एक नई दुनिया की सर्जना करता हुआ
बचे रहेंगे पुरातत्ववेत्ता अपनी नई ज़िम्मेदारियों में
अतीत के सम्मोहन और भय से पूरी तरह मुक्त
अवरोधों को पार कर आगे बढ़ते हुए
खोजते हुए हमारा अस्तित्व
भाषा के खंडहरों में

यह भटके हुए समय की मांग नहीं है
फ़िर भी ज़रूरी है इस प्रलय में पुरातत्ववेत्ताओं का बचे रहना
जो खोज सकें आस्था की अंधी गुफाओं में छुपी
मनु और नूह की नावों में बची दुनिया की असलियत
जो सुन सकें चैत्य और विहारों में घोषित
उद्घोषों के मूल में आधी दुनिया की उपेक्षा
जिसे किसी पसली से बनाए जाने का ज़िक्र है
जो देख सकें अलग - अलग वर्गों के मीनार कलश
गुम्बदों की ऊँचाइयों में फ़र्क नाप सकें
जो जान सकें मंत्रोच्चारण करने वाली जिव्हाओं के बनाए
नैतिकता अनैतिकता के मानदंड
समय की पक्षधरता में जो निरपेक्ष होकर तय कर सकें
इस दुनिया को जन्म देने वाले के जन्म का देश काल

सिर्फ़ अपेक्षाएँ नहीं हैं यह
कि अपेक्षा के मूल में स्वार्थ की गुंजाइश बहुत
प्रार्थनाएँ भी नहीं कि उनके पीछे भय होता है
उम्मीद आशाएँ यकीन सब शब्दों की बाज़ीगरी
और आदेश में मनुष्यता का विलोम है
सिर्फ़ इच्छाएँ हो सकती है ये
कि इच्छाओं का दूसरा नाम ही है जिजीविषा
अगर उनकी दिशा मनुष्य के कल्याण की हो
अपमान न हो उनमें किसीका
और हर किसी की इच्छा का सम्मान भी न हो
ज़रूरी यह कि शामिल न हो किसी किस्म का पागलपन

इन्हीं इच्छाओं में जन्म लेती है यह कामना
काश पृथ्वी पर ऐसे भी पुरातत्ववेत्ता हों
जो सीढ़ी-दर -सीढ़ी समय की गहराइयों में उतरते चले जाएँ
पार कर जाएँ आश्वासनों के सुखद अवरोध
तत्काल के दबाव से मुक्ति पाएँ

ऐसा हो कि पहुँच जाएँ अज्ञान के उस युग तक
जहाँ न कोई संकेत था न लिपि न भाषा
न धर्म न उत्पीड़न
जहाँ न कोई ईश्वर था न कोई विश्वास
न आस्थाएँ न भय
जहाँ न भूख थी न मनुष्य था न कोई जीव

ऐसा हो कि पहुँच जाएँ अकस्मात के उस दिन तक
कोई अस्तित्व नहीं था जब इस पृथ्वी का
ग्रहों के अधीनस्थ उपग्रह भी नहीं थे
न ग्रह थे कहीं सूर्य के चाकर
न सूर्य थे कहीं सौरमंडल में
घना अंधकार भी नहीं था लुप्त तारों के बीच

फ़िर ऐसा हो कि पहुँच जाएँ आश्चर्य की उस घड़ी तक
जिसमें न अंतरिक्ष का जन्म हुआ था
न दृष्टि की क्षमता का पर्याय आकाश था
न बृह्माण्ड था कोई अपनी संकल्पना में
न आकाशगंगाएँ बिखेरती हुई अपनी छटाएँ

बस निवेदन फ़कत इतना कि
कहीं आरामगाह में आराम करते वक़्त के साथ न ठहर जाएँ
चलते चलें पुरातत्ववेत्ता उस घड़ी तक पहुँच जाएँ
और अंत में ऐसा हो कि पहुँचे
अकिंचन के उस पल तक जिसमें कुछ नहीं था
जो रिक्त भी नहीं था और शून्य भी नहीं
न हवा थी जहाँ अपने तर्क में निर्वात भी नहीं
न परिभाषा थी जिसकी कोई न कोई अर्थ था
कुछ नहीं की तरह जो सिर्फ़ कुछ नहीं था

पहुँचें पुरातत्ववेत्ता उस पल में और महसूस करें
कि यह अतीत वर्तमान और भविष्य के मनुष्य की कामना है

शुरू करें वहाँ से काल की गवेषणा
फ़िर बटोरें अवशेष कुछ समय की रफ़्तार में
अंतरिक्ष के बृह्माण्ड के आकाश के और आकाशगंगाओं के
संग्रह करें टुकड़े सूर्य तारों ग्रहों उपग्रहों और पृथ्वी के
इकठ्ठा करें ठीकरे जीवों और मनुष्यों के
जमा करें कंकाल भय और उत्पीड़न के
भूख भाषा लिपि ईश्वर धर्म और विश्वास के कण बटोरें
सिद्ध करें कि कुछ नहीं से यह सब कुछ कैसे आया

मनुष्य की सत्ता का आश्चर्यजनक असीमित लोक है यह
जहाँ मनुष्य ही शासक है अपने अहं में
और मनुष्य ही शासित
मनुष्य ही भूख है अपने चरम में
और मनुष्य ही भोजन

मनुष्य ही ईश्वर है जहाँ अपनी अगम्यता में
और ईश्वर ही मनुष्य
अपनी सम्पूर्णता में मनुष्य ही सब कुछ है
और मनुष्य ही कुछ नहीं

यह सब उसी दिमाग़ के खेल हैं
दिमाग़ जो मक्खन की तरह नर्म है
और जिसमें भीतर तक धँस जाती हैं उँगलियॉ
उसके इशारे पर खून बहाती हैं मनुष्य की ठोस अवधारणाएँ
बस्तियाँ जलाती हैं उजाड़ देती हैं जीवन की सहजता

यहाँ ज़रूरी है ऐसे पुरातत्ववेत्ताओं का होना
जो अपने इरादों और उपकरणों से लैस होकर
उतरते चले जाएँ
मानव मस्तिष्क की तमाम अनछुई परतों के भीतर
जहाँ आज से पहले कोई नहीं पहुँच पाया हो
और शेष हो जहाँ अब भी उत्खनन की अनंत सम्भावनाएँ

ढूँढ निकालें पुरातत्ववेत्ता
प्रेम सौहार्द अपनत्व भाईचारे और सह अस्तित्व के भग्नावशेष
साबित करें यह सिर्फ़ शब्द नहीं हैं अपने अस्तित्त्व में
और इनके होने में ही सृष्टि का होना है

उठाएँ अपनी कलम और लिख दें भविष्य की अभ्यास पुस्तिका में
कि इतिहास सिर्फ़ हड्डियों और ठीकरों में नहीं उपस्थित
वह संवेदनाओं में है मनुष्य की और वस्तुओं की
जानना ज़रूरी है उसे जो तलाश रहा अपनी जगह
नस्ल और जाति के बखानों में
कि वह मनुष्य की चेतना का इतिहास है।