भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुरुष / रचना त्यागी 'आभा'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:28, 25 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रचना त्यागी 'आभा' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वाह पुरुष, क्या जीव है तू
स्वप्न में बजते मृदंग!
झूमता ऐसे नशे में
ज्यों लहू में बहती भंग!

अनगिनत हैं रूप तेरे,
अनगिनत तेरे हैं रंग
तू किसी को देव है, तो
है किसी को तू भुजंग!

हृष्ट-पुष्ट है देह, तो क्या?
मानसिकता पर अपंग!
संशय की भीतर ही भीतर
खुद रही गहरी सुरंग!

अट्टहास है लब्धियों पर
अपनी करता ज्यों मलंग
पीड़ की सरिता में डूबी,
जो बंधी है तेरे संग!

काटना चाहे उसे तू
उड़ना चाहे जो पतंग
बावरे क्या कर रहा तू
ऐसे मरती क्या उमंग?

आ धरा पर सहजता की
कर दे अपना मोहभंग
वो है वामांगी तेरी,
शत्रु नहीं, फिर क्यों ये जंग ?

खोल कर तो देख द्वारे
उर के, रह जायेगा दंग
प्रेम और विश्वास कर
मन की गलियाँ रख न तंग !!