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"पूछता क्यों शेष कितनी रात? / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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पूछता क्यों शेष कितनी रात? | पूछता क्यों शेष कितनी रात? | ||
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छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू | छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू | ||
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स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू | स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू | ||
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परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात! | परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात! | ||
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झर गये ख्रद्योत सारे, | झर गये ख्रद्योत सारे, | ||
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तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे; | तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे; | ||
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बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे! | बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे! | ||
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साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात! | साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात! | ||
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व्यंग्यमय है क्षितिज-घेरा | व्यंग्यमय है क्षितिज-घेरा | ||
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प्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा; | प्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा; | ||
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आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा! | आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा! | ||
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छीजता है इधर तू, उस ओर बढता प्रात! | छीजता है इधर तू, उस ओर बढता प्रात! | ||
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प्रणय लौ की आरती ले | प्रणय लौ की आरती ले | ||
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धूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले | धूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले | ||
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मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती ले | मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती ले | ||
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मिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात। | मिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात। | ||
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कौन भय की बात। | कौन भय की बात। | ||
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पूछता क्यों कितनी रात? | पूछता क्यों कितनी रात? | ||
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11:29, 12 मार्च 2016 के समय का अवतरण
पूछता क्यों शेष कितनी रात?
छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू
स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू
परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!
झर गये ख्रद्योत सारे,
तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे;
बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे!
साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात!
व्यंग्यमय है क्षितिज-घेरा
प्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा;
आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा!
छीजता है इधर तू, उस ओर बढता प्रात!
प्रणय लौ की आरती ले
धूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले
मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती ले
मिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात।
कौन भय की बात।
पूछता क्यों कितनी रात?