भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूजा / इमरोज़ / हरकीरत हकीर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 24 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इक दिन
भगवान को पूछा
टूटे बाजारी फूलों से
किसी की पूजा हो सकती है?
भगवान ने हँस कर कहा
तूने देखा होगा
मंदिरों में घरों में
जहाँ कहीं भी टूटे फूलों से
पूजा होती है या हो रही है
वहाँ मैं पत्थर हो जाता हूँ
न सुनता हूँ न बोलता हूँ न देखता हूँ
पर जो खुद फूल बनकर
मेरी पूजा करता है
वहाँ मैं बुत नहीं बनता
उसे देख-देख
मैं भी फूल हो जाता हूँ
प्यार हो जाता हूँ…।