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"प्यासे पत्थर / सुरेश यादव" के अवतरणों में अंतर

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तुमने मुझे अच्छा आदमी कहा
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बचपन में
मैं, काँप गया
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पढ़ी और सुनी थी
हिलती हुई पत्ती पर
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प्यासे कौवे की कहानी
थरथराती
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जिसने
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अधभरे घड़े में
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डाले थे कंकर -पत्थर
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फिर a-
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मुहाने तक भर आये पानी को
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पिया था जी भर कर
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चाहतों के अधभरे घड़े में डाले
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मैंने भी
 +
श्रम और वक्त के न जाने कितने पत्थर
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पानी का इंतजार किया मेरे भी होठों ने
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मुहाने तक आये, लेकिन -चीखते पत्थर
 +
प्यासे थे बहुत जो
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और उनमें थी पी जाने की गहरी ललक
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खुद मुझको ही - घूंट घूंट कर ।
  
  
 
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21:39, 19 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


बचपन में
पढ़ी और सुनी थी
प्यासे कौवे की कहानी
जिसने
अधभरे घड़े में
डाले थे कंकर -पत्थर
फिर a-
मुहाने तक भर आये पानी को
पिया था जी भर कर
चाहतों के अधभरे घड़े में डाले
मैंने भी
श्रम और वक्त के न जाने कितने पत्थर
पानी का इंतजार किया मेरे भी होठों ने
मुहाने तक आये, लेकिन -चीखते पत्थर
प्यासे थे बहुत जो
और उनमें थी पी जाने की गहरी ललक
खुद मुझको ही - घूंट घूंट कर ।