भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिफल / हरीश करमचंदाणी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चे की हंसी में
आप पा सकते हैं
फिर से वह सब कुछ
जो छीना रौंदा जा चुका हो आपका
आपको तो बस बचानी है बच्चे की हंसी