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"प्रथमपतिगृहानुभवम् / संस्कृत" के अवतरणों में अंतर

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20:22, 31 मार्च 2009 के समय का अवतरण

हे सखि पतिगृहगमनं
प्रथमसुखदमपि किंत्वतिक्लिष्टं री।
परितो नूतन वातावरणे
वासम् कार्यविशिष्टं री।।
वदने सति अवरुद्धति कण्ठं
दिवसे अवगुण्ठनमाकण्ठं।
केवलमार्य त्यक्त्वा तत्र
किंञ्चिदपि मया न दृष्टं री।।
वंश पुरातन प्रथानुसरणं
नित्यं मर्यादितमाचरणं।
परिजन सकल भिन्न निर्देश पालने
प्रभवति कष्टं री।।
भर्तुर्पितरौ भगिनी भ्राता
खलु प्रत्येकः क्लेश विधाता।
सहसा प्रियतममुखं विलोक्य तु
सर्वं कष्ट विनिष्टं री।।
अभवत् कठिनं दिवावसानम्
बहु प्रतीक्षितं रजन्यागमनम्।
लज्जया किञ्च कथं कथयानि
विशिष्ट प्रणयपरिशिष्टं री।।