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प्रिय के प्रान समान हो सीखी कहाँ सुभाय / सुन्दरकुवँरि बाई

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प्रिय के प्रान समान हो सीखी कहाँ सुभाय।
चख-चकोर आतुर चतुर चंद्रानन दरसाय॥
चंदानन दरसाय अरी हा! हा! है तोसों।
वृथा मान यह छोड़ि कही पिय की सुनि मासों॥
सूधै दृष्टि निहारि प्रिया सुनि प्रेम पहेली।
जल बिन झष अहि-मणि जुहीन इन गति उन पेली॥