भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फक्कड़ दा रोॅ पाठ / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=ढोल ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:36, 11 जून 2016 के समय का अवतरण

अक्कड़ सक्कड़ लक्कड़ दा
गुरु जी बनलै फक्कड़ दा

चैतोॅ संग बैशाख पढ़ावै
ई दोनोॅ पर जेठ चढ़ावै
जेठोॅ पर आषाढ़ बतावै
जै पर सावन-भादोॅ लावै
आसिन, कातिक तुरत गिनै छै
अगहन बादे पूस तनै छै
हेकरोॅ बाद जे आवै माघ
लागै जेनां ऐलै बाघ
फागुन जेकरा नाच नचावै
फगुवो केॅ नँचवैलेॅ आवै
बुतरु केॅ कुछ भार नै लागै
हेनै पढ़ावै गप्पड़ दा ।
अक्कड़ सक्कड़ लक्कड़ दा
गुरु जी बनलै फक्कड़ दा ।
बारह महीना ऋतु छोॅ
पढ़ चोॅ, छोॅ, जोॅ, पोॅ, फोॅ, बोॅ
गर्मी पीछू वर्षा दौड़ै
जेकरोॅ टाँग शरद जी तोड़ै
तहियो कोमल बड़ा शरद
सब मीट्ठोॅ में जेना शहद
गोइयाँ हेकरोॅ एक हेमन्त
पीछू-पीछू राखै तन्त
बचलै शिशिर, बसन्त सुनोॅ
दू में अच्छा एक चुनोॅ
बच्चा केॅ लटकैलेॅ राखै
बच्चा बोलै गप्पड़ दा ।
अक्कड़ सक्कड़ लक्कड़ दा
गुरु जी बनलै फक्कड़ दा ।