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"फारि फारि खाती हैं / बोली बानी / जगदीश पीयूष" के अवतरणों में अंतर

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पेटु हम भरइया
 
पेटु हम भरइया
  
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07:49, 24 मार्च 2019 के समय का अवतरण

फारि फारि खाती हैं
द्याँह अब बरइया
सहरन लँग भाजि रही
गाँव गइ चिरइया

गिद्ध बड़े ब्याढब हैं
रोजु नये करतब हैं
पखनन लौ का न कोउ
है हियाँ हेरइया

गलियारे-म धूरि-धूरि
बिरवा सब झूरि-झूरि
दाना पानी लौ अब
है नहीं जुरइया
है नहीं जुरइया

बित्तउ भरि छाँह नहीं
मदति केरि बाँह नहीं
हरहन कइ जूठनि मा
पेटु हम भरइया