भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अधरों में अब है प्यास जगी
बन बनके झरना अब बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बन मेहदी अब बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
पैरों नैनों में है जो सूनापन
महावर बन के काज़ल सज जाना तुमतुम।
Anonymous user