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"फूँकि आई सबै बन को / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर

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23:20, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

फूँकि आई सबै बन को ,
हिय फूँकि कै मैन की आग जगावति ।
तू तौ रसातल बेधि गई उर ,
बेधति और दया नहिँ लावति ।
आप गई अरु औरन खोवति ,
सौति के काम भली बिधि आवति ।
ज्योँ बड़े बँस तेँ छूटी है ,
त्योँ बड़े बँस तेँ औरन हू को छुड़ावति ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।