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फूटा गीत नया / धनंजय सिंह

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मन पर घिरा कुहासे वाला
मौसम बीत गया
इन्द्रधनुष रचती किरणों का
फूटा गीत नया ।

हरसिंगार झरे
टहनी-टहनी पंछी चहके
जूही, केतकी, वनचम्पा
बनकर सपने महके

गया
उदासी बुननेवाला
स्याह अतीत गया ।

खिली कुमुदिनी ने सौरभ के
गन्ध-पत्र बाँटे
सिहरन जगी रोम-कूपों में
उग आये काँटे

झोंका
मलय-पवन का
मन पर क्या-क्या चीत गया ।

चंचल हुआ झील का पानी
दरक गई काई
नभ से उतरी सोनमछरिया
जल में लहराई

पतझर से
कोंपल का सपना
फिर-फिर जीत गया ।