भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बगिया में ठाढ़ा भेल कवन बेटी / मगही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 17 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatMagahiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बगिया<ref>बाग, बागीचा</ref> में ठाढ़ा भेल कवन बेटी, बगिया सोभित लगे हे।
बाँहि<ref>बाँह, भुजा</ref> पसार मलिनिया कि आजु फुलवा लोर्हब<ref>लोढूँगी</ref> हे॥1॥
धीर धरु अगे मालिन धीर धरु, अवरो<ref>और</ref> गँभीर बनु हे।
जब दुलहा होइहें कचनार<ref>एक वृक्ष, जो हरा-भरा रहता है, अर्थात कचनार की तरह हरित-पुष्पित</ref> तबे फुलवा लोर्हब हे॥2॥
मँड़वाहिं ढाढ़ा भेल कवन बेटी, मड़वा सोभित लगे हे।
बाँहि पसार कवन दुलहा, आजु धनि हमर<ref>हमारी</ref> हे॥3॥
धीर धरु अजी परभु, धीर धरु, अवरो गंभीर बनु हे।
जब बाबू करिहन<ref>करंेगे</ref> कनेयादान, तबे तोहर होयब हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>