भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बटाऊ रे चलना आज कि काल / दादू दयाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 21 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दादू दयाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिंदू तुरक न जाणों दोइ।
साँईं सबका सोई है रे, और न दूजा देखौं कोइ॥टेक॥

कीट-पतंग सबै जोनिनमें, जल-थल संगि समाना सोइ।
पीर पैगम्बर देव-दानव, मीर-मलिक मुनि-जनकौं मोहि॥१॥

करता है रे सोई चीन्हौं, जिन वै रोध करै रे कोइ।
जैसैं आरसी मंजन कीजै, राम-रहीम देही तन धोइ॥२॥

साँईंकेरी सेवा कीजै पायौ धन काहेकौं खोइ।
दादू रे जन हरि भज लीजै, जनम-जनम जे सुरजन होइ॥३॥