भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें / मंजूर 'हाशमी'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:38, 14 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजूर 'हाशमी' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें
जुनूँ की भूली हुई रस्म का इआदा करें

तमाम अगले ज़मानों को ये इजाज़त है
हमारे अहद-ए-गुज़िश्‍ता से इस्तिफ़ादा करें

उन्हें अगर मेरी वहशत को आज़माना है
ज़मीं को सख़्त करें दश्‍त को कुशादा करें

चलो लहू भी चरागों की नज़र कर देंगे
ये शर्त है कि वो फिर रौशनी ज़्यादा करें

सुना है सच्ची हो नियत तो राह खुलती है
चलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें