भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदलने का सुख / एम० के० मधु" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम० के० मधु |संग्रह=बुतों के शहर में }} <poem> बदलने क…)
 
 
पंक्ति 37: पंक्ति 37:
 
बना रहा है नई दुनिया
 
बना रहा है नई दुनिया
 
उनके लिए
 
उनके लिए
सिर्फ़ उनके लिये।
+
सिर्फ़ उनके लिए।
 
</poem>
 
</poem>

21:40, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

 
बदलने का सुख
ये उंगलियां
जो कभी इंगित होती थीं
दूसरों के घरों में
सूराख़ तलाशने
अब मुट्ठी बन
आकाश में लहराती हैं
और बनती हैं आवाज़
उन सूराख़ों को बंद करने के लिए

ये आंखें
अपनी चंचलता में
फिकरे कसती थीं
अब निगहबान हैं
बेआंखों की नगरी में
अकेली प्रयासरत

ये पांव
अपनी अकड़ में
ढाहते थे घरौंदे
तोड़ते थे खेतों की मेड़
अब बनाते हैं
पगडंडियां
उनके लिए

ये पूरा शरीर
जो कभी
सिर्फ़ अपना लगता था
अब
तिनके जोड़-जोड़
बना रहा है नई दुनिया
उनके लिए
सिर्फ़ उनके लिए।