भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बदळणो / राजूराम बिजारणियां

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घड़ी री सूयां
पिछाणै आपरी
चाल रो चकोरियो
छोटकी टुरयां’जै
बड़ोड़ी रै ला’रै
काण कायदै साथै।

पाणी‘ई कद भूलै
बैवंतै बखत
न्है’र रो मारग

छोड़ माटी सूं
सागो अनजळ रो
कद रूंख चढ्या गिगनार।

खींपा री खिंपोळी
फोगां रा फोगला
चिड्यां री चिंचाट
आंधी री सूंसाट
बादळ री गड़गड़
गडां री पड़पड़
आज ताणी
बि’सी री बि‘सी

नीं है तो फगत-
,सीर अन्न में!
नीर तन में!!
पीर मन में!!!