भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बनेंगी साँपिन / कुँअर बेचैन

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:38, 8 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन |संग्रह=डॉ० कुंवर बैचेन के नवगीत / क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंद हैं मुट्ठी में
चंद सुर्ख-पंक्तियाँ
मुट्ठी के खुलते ही
धरती पर रेंगकर-बनेंगी साँपिन।
अपने ही आपमें
हम इतना डूबे
बदल गए अनजाने
सारे मंसूबे
बंद हैं मुट्ठी में
थोथी आसक्तियाँ
मुट्ठी के खुलते ही
सबको खा जाएगी पीड़ा डायन।
एक अदद गुलदस्ता
टूक-टूक बिखरा
झरी हुई पत्तियाँ
जाते जाते भी
धरती पर फेंक गईं
एक नया “फिकरा”-
बंद हैं मुट्ठी में
अनजानी शक्तियाँ
मुट्ठी के खुलते ही
खुद ही खुल जाएँगे-कैदी सब दिन।