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"बन्दा नवाज़ियों पे खु़दा-ए-करीम था / अमीर मीनाई" के अवतरणों में अंतर
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करता न मैं गुनाह तो गुनाह-ए-अज़ीम था | करता न मैं गुनाह तो गुनाह-ए-अज़ीम था | ||
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वल्लाह क्या नसीब जनाब-ए-कलीम था | वल्लाह क्या नसीब जनाब-ए-कलीम था | ||
− | दुनिया का हाल अहल-ए-अदम है ये | + | दुनिया का हाल अहल-ए-अदम है ये मुख़्तसर |
− | इक दो क़दम का | + | इक दो क़दम का कूच-ए-उम्मीद-ओ-बीम था |
करता मैं दर्दमन्द तबीबों से क्या रजू | करता मैं दर्दमन्द तबीबों से क्या रजू | ||
− | जिस ने दिया था दर्द बड़ा वो | + | जिस ने दिया था दर्द बड़ा वो हक़ीम था |
− | समाँ-ए-उफ़्व क्या मैं कहूँ | + | समाँ-ए-उफ़्व क्या मैं कहूँ मुख़्तसर है ये |
बन्दा गुनाहगार था ख़ालिक़ करीम था | बन्दा गुनाहगार था ख़ालिक़ करीम था | ||
− | जिस दिन से मैं चमन में हुआ | + | जिस दिन से मैं चमन में हुआ ख़्वाहे-ए-गुल 'आमीर' |
नाम-ए-सबा कहीं न निशान-ए-नसीम था | नाम-ए-सबा कहीं न निशान-ए-नसीम था |
22:35, 1 दिसम्बर 2009 का अवतरण
बन्दा-नवाज़ियों पे ख़ुदा-ए-करीम था
करता न मैं गुनाह तो गुनाह-ए-अज़ीम था
बातें भी की ख़ुदा ने दिखाया जमाल भी
वल्लाह क्या नसीब जनाब-ए-कलीम था
दुनिया का हाल अहल-ए-अदम है ये मुख़्तसर
इक दो क़दम का कूच-ए-उम्मीद-ओ-बीम था
करता मैं दर्दमन्द तबीबों से क्या रजू
जिस ने दिया था दर्द बड़ा वो हक़ीम था
समाँ-ए-उफ़्व क्या मैं कहूँ मुख़्तसर है ये
बन्दा गुनाहगार था ख़ालिक़ करीम था
जिस दिन से मैं चमन में हुआ ख़्वाहे-ए-गुल 'आमीर'
नाम-ए-सबा कहीं न निशान-ए-नसीम था