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"बसंत 1985 / राजेश जोशी" के अवतरणों में अंतर

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मैं कविता रचता हूं
 
मैं कविता रचता हूं
 
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रचता क्या हूं
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कविता रचने के बिना
 
कविता रचने के बिना
 
मैं रह नहीं सकता ।
 
मैं रह नहीं सकता ।
                                                      कृष्णशंकर सोनाने
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23:37, 3 अक्टूबर 2008 का अवतरण

मैं कविता रचता हूं
रचता क्या हूं
प्रियतमाओं के मुखड़े निहारता हूं
और पत्थरों से सिर टकराता हूं ।
मैं कविता रचता हूं
फूलों का रस और रसों की सुगन्ध
इस तरह चुरा लेता हूं
जिस तरह किसी के आंख का काजल
कोई चुरा लेता है।
मैं रचता हूं कविता
और चुपचाप
गिन लेता हूं पंख
उड़ती चिड़िया के
कितने पर है उसकी उड़ान ।
मैं कविता रचता हूं
किशोरीलाल की झोपड़ी में बैठे
और रांधता हूं
बच्चों को खुश करने के लिए गारगोटियों की सब्जी ।
मैं रचता हूं कविता
तसलीमा नसरीन की
आंखों के आंसू
अपनी आंखों में महसूसते हुए
कि क्यों एक नारी को समूचा एशिया महाव्दिप
निष्कासित करने के लिए उतारू है।
मैं इसलिए कविता रचता हूं कि
बगावत की मेरी आवाज़
जड़हृदयों के भीतर तक चोट कर जाए
और कहीं से तो
एक चिंगारी उठे।
मैं कविता रचता हूं
क्योंकि आप भी समझ लें कि
कविता रचने के बिना
मैं रह नहीं सकता ।