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बसन्त / अजित कुमार

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घोंघे पर छा गया बसंत ।

अपने घर को उसने
कँलगी की तरह
माथे पर रखा,
अपने पैरों स
घोड़े की दुलकी वह चला...
फिर क्यों न लोग कहते-
वाह ! वाह !
वाह ! श्री घोंघाबसंत !