भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बस इतना जान पाती कि किस जुबान का / वेरा पावलोवा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:38, 16 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेरा पावलोवा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बस इतना जान पाती कि
किस जुबान का
तर्जुमा है तुम्हारा ‘आई लव यू’ ,
और पा जाती वह असल,
तो देखती शब्दकोष
जानने को कि
तर्जुमा है चौकस
या तर्जुमा-नवीस की नहीं है कोई खता ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल