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"बात ऐसी न सुनी थी किसी दीवाने में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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ख़ुद को रो-रोके पुकारा किया वीराने में | ख़ुद को रो-रोके पुकारा किया वीराने में | ||
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रंग कुछ और है नज़रों के ठहर जाने में | रंग कुछ और है नज़रों के ठहर जाने में | ||
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प्यार का नाम लिया था कभी अनजाने में | प्यार का नाम लिया था कभी अनजाने में | ||
− | जा रहा है कोई मुँह | + | जा रहा है कोई मुँह फेरके अब तुझसे, गुलाब! |
− | आ गया वह भी किसी | + | आ गया वह भी किसी औरके बहकाने में |
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01:00, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
बात ऐसी न सुनी थी किसी दीवाने में
ख़ुद को रो-रोके पुकारा किया वीराने में
उड़ रही हो तेरी आँखों की ही ख़ुशबू हर ओर
रंग कुछ और है नज़रों के ठहर जाने में
हम पे चढ़ता है नशा जिसका शराब और ही है
वह न शीशे में उतरती है न पैमाने में
उम्र भर हमको तड़पने की सज़ा दे डाली
प्यार का नाम लिया था कभी अनजाने में
जा रहा है कोई मुँह फेरके अब तुझसे, गुलाब!
आ गया वह भी किसी औरके बहकाने में