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"बादरु गरजइ बिजुरी / कन्नौजी" के अवतरणों में अंतर

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सावन सूखि मई सब काया<br>
 
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देखु भक्त कलियुग की माया,<br>
 
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घर की खीर, खुर–खुरी लागइ<br>
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घर की खीर, खुरखुरी लागइ<br>
 
बाहर की भावइ गुड़-लइया।<br>
 
बाहर की भावइ गुड़-लइया।<br>
 
काहू सौतिन...।।<br><br>
 
काहू सौतिन...।।<br><br>

08:43, 19 अप्रैल 2010 का अवतरण

बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ
बैरिनि ब्यारि चलइ पुरबइया,
काहू सौतिन नइँ भरमाये
ननदी फेरि तुम्हारे भइया।।

दादुर मोर पपीहा बोलइँ
भेदु हमारे जिय को खोलइँ
बरसा नाहिं, हमारे आँसुन
सइ उफनाने ताल-तलइया।
काहू सौतिन...।।

सबके छानी-छप्पर द्वारे
छाय रहे उनके घरवारे,
बिन साजन को छाजन छावइ
कौन हमारी धरइ मड़इया ।
काहू सौतिन...।।

सावन सूखि मई सब काया
देखु भक्त कलियुग की माया,
घर की खीर, खुरखुरी लागइ
बाहर की भावइ गुड़-लइया।
काहू सौतिन...।।

देखि-देखि के नैन हमारे
भँवरा आवइँ साँझ–सकारे,
लछिमन रेखा खिंची अवधि की
भागि जाइँ सब छुइ-छुइ ढइया ।
काहू सौतिन...।।

माना तुम नर हउ हम नारी
बजइ न एक हाथ सइ तारी,
चारि दिना के बाद यहाँ सइ
उड़ि जायेगी सोन चिरइया।
काहू सौतिन...।।