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"बिन जिया जीवन (लाइफ अनलिव्ड सॉनेट / जॉन पायने / विनीत मोहन औदिच्य" के अवतरणों में अंतर

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कितने अधिक माहों, कितने अधिक वर्षों का विस्तार
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दिवसों के मुहाने पर कबसे मेरी आत्मा है खड़ी
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विश्वासघाती धुंध में तनावग्रस्त धुंधली आँखें बडी़
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समीप और दूर जीवन प्रारंभ होने के संकेत लिए साकार
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मात्र परछाई सी पसरी हुई है भूरे रंग की नीहार
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आशाओं की सीमाओं से परे व्यतीत हुए मार्गों में पड़ी
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मेरी दृष्टि को प्रतीत होते पीत पिशाचों की टोली उड़ी
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आसन्न आशा और भय की पूर्व सूचनाओं की भरमार।
  
अत्यंत लज्जाजनक होता व्यापक शक्ति का व्यर्थ क्षरण
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अंततः जीवन उठ खड़ा होगा निश्चित कहा मैंने स्पष्ट
संभोग की इतिश्री से रतिक्रिया अंत तक वासना रहे पास
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मुझे बुहार कर ले जायेगा लीला और आनंद से
निर्मम कामुकता कराती वचन भंग, दोषारोपण, लाती मरण
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किंतु मेरे यह कहते ही विस्फोट से कंपित हुआ अपशिष्ट।
असभ्य, अतिरंजित, जंगली, जिस पर न हो सकता विश्वास ।
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सुखानुभूति उपरांत अविलम्ब उपजाती अप्रिय विरक्ति
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चीत्कार और कोलाहल पूर्ण रोमांचकारी द्वंद से
पूर्व में खोजी जाती व्यग्रता से, लक्ष्य सिद्धि उपरांत
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पतित हुई रात्रि मुझ पर, हुए सब शांत अंतर्द्वन्द से
होती कारक घृणा का, ज्यों मत्स्य की प्रलोभन अनुरक्ति
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एक मंद स्वर ने कहा मुझसे, बीता है जीवन होकर नष्ट।।
जो जाल बिछाया जाता प्राप्त कर्ता को करने अशांत ।
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अनुसरण और प्राप्ति में करती है ये वासना उन्मत्त
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पाकर, पाते हुए और पाने की खोज में टूटती हर सीमा
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प्राप्ति कराती स्वर्गीय अनुभूति, लाती व्यथा हो कर प्रदत्त
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पूर्व में संभावित आनंद, समाप्ति पर शेष रहता स्वप्न धीमा।
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विश्व को है सर्व विदित, फिर भी कोई न जान पाता!
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त्याग देता मनुज स्वर्ग जो इसे नर्क द्वार तक ले जाता।।
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07:51, 28 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण

कितने अधिक माहों, कितने अधिक वर्षों का विस्तार
दिवसों के मुहाने पर कबसे मेरी आत्मा है खड़ी
विश्वासघाती धुंध में तनावग्रस्त धुंधली आँखें बडी़
समीप और दूर जीवन प्रारंभ होने के संकेत लिए साकार
मात्र परछाई सी पसरी हुई है भूरे रंग की नीहार
आशाओं की सीमाओं से परे व्यतीत हुए मार्गों में पड़ी
मेरी दृष्टि को प्रतीत होते पीत पिशाचों की टोली उड़ी
आसन्न आशा और भय की पूर्व सूचनाओं की भरमार।

अंततः जीवन उठ खड़ा होगा निश्चित कहा मैंने स्पष्ट
मुझे बुहार कर ले जायेगा लीला और आनंद से
किंतु मेरे यह कहते ही विस्फोट से कंपित हुआ अपशिष्ट।

चीत्कार और कोलाहल पूर्ण रोमांचकारी द्वंद से
पतित हुई रात्रि मुझ पर, हुए सब शांत अंतर्द्वन्द से
एक मंद स्वर ने कहा मुझसे, बीता है जीवन होकर नष्ट।।

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