भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीस बिधि आऊँ दिन बारीये न पाऊँ और / आलम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 17 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलम |अनुवादक= |संग्रह= }} Category:पद <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बीस बिधि आऊँ दिन बारीये न पाऊँ और,
याही काज वाही घर बांसनि की बारी है ।
नेंकु फिरि ऐहैं कैहैं दै री दै जसोदा मोहि,
मो पै हठि माँगैं बंसी और कहूँ डारी है ।
'सेख' कहै तुम सिखवो न कछु राम याहि,
भारी गरिहाइनु की सीखें लेतु गारी है ।
सँग लाइ भैया नेंकु न्यारौ न कन्हैया कीजै,
बलन बलैया लैकें मैया बलिहारी है ।