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"बूढ़ा हँसता है / शरद कोकास" के अवतरणों में अंतर

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सूरज उगने के बाद भी।
 
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20:36, 1 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

 
झोपड़ी के बाहर
झोलंगी खाट पर पडा बूढ़ा
अपने और सूरज के बीच
एक बड़े से बादल को देख
बच्चे की तरह हँसता है

उसकी समझ से बाहर है
सूरज का भयभीत होना
सूरज की आग से बड़ी
एक आग और है
जो लगातार धधकती है
उसके भीतर
सूरज उगने से पहले भी
सूरज उगने के बाद भी।