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"बेरुख़ी तो मेरे सरताज नहीं होती है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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रूप मोहताज़ है बन्दों की नज़र का लेकिन
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बंदगी रूप की मोहताज़ नहीं होती है
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ताजपोशी तो बिना ताज नहीं होती है
 
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01:27, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


बेरुख़ी तो मेरे सरताज नहीं होती है
पर वो पहले सी नज़र आज नहीं होती है

रूप मोहताज है बन्दों की नज़र का लेकिन
बंदगी रूप की मोहताज नहीं होती है

सर पे काँटें भी बड़े शौक से रखते हैं गुलाब
ताजपोशी तो बिना ताज नहीं होती है