भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बोले बग़ैर हिज्र का क़िस्सा सुना गया / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' }} {{KKCatGhazal}} <poem> बोले बग़ैर हिज्…) |
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' | + | |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |
+ | |संग्रह=अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला' | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatGhazal}} |
<poem> | <poem> | ||
बोले बग़ैर हिज्र का क़िस्सा सुना गया | बोले बग़ैर हिज्र का क़िस्सा सुना गया |
22:07, 16 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण
बोले बग़ैर हिज्र का क़िस्सा सुना गया
सब दिल का हाल आपका चेहरा सुना गया
इस दौर में किसी को किसी का नहीं लिहाज़
बातें हज़ार अपना ही बेटा सुना गया
भूखे भले ही मरते, न करते उधारियाँ
सौ गालियाँ सवेरे से बनिया सुना गया
वो नाग है कि फन ही उठाता नहीं ज़रा
धुन बीन की हरेक सँपेरा सुना गया
दिल का सुकून छीनने आया था नामुराद
दिलचस्प एक क़िस्सा अधूरा सुना गया
उस रब के फै़सले का मुझे इन्तज़ार है
मुन्सिफ़ तो अपना फ़ैसला कब का सुना गया
क्यों मोम हो गई हैं ये पत्थर की मूरतें
क्या इनको अपना दर्द 'अकेला' सुना गया