भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भटकते सपने / सविता सिंह

Kavita Kosh से
77.41.25.68 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:46, 5 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी }} खोते गए हैं मेरे ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खोते गए हैं मेरे साथ जन्मे वे सारे सपने

जो मेरे साथी थे

जिनको बचाए रखा नींद में मैंने

जैसे बचाती है नींद सपनों को अक्सर


अब मेरी याद में आँखों की खोती रोशनी की तरह

उनके खोने की उदासी बचती है

ख़ाली सड़क पर ग़ुम होती किसी प्रिय की पदचाप जैसे


मुझे नहीं मालूम वे कब खोए और कैसे

बस यह जानती हूँ वे हैं अब भी कहीं

किसी और की नींद में भटकते

याद करते पिछले अभिसारों को