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भरी सांस से / वीत्येज़स्लव नेज़्वल / अनिल जनविजय

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 मेरी छोलदारी पर झरी एक पीली पत्ती
अफ़सोस हो रहा है कि सब कुछ छूट रहा है
बारिश हो रही है, अब शरद भी रूठ रहा है ।

वो किताबें रही बाक़ी, जिन्हें पढ़ना चाहता था
नीली आँखें हो गई धुँधली, मन जिन्हें ब्याहता था

रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
 
लीजिए, अब यही कविता रूसी अनुवाद में पढ़िए
                  Витезслав Незвал
                             Вздох

Желтый лист над палаткой моей пролетел,
Жаль всего, что ушло и уходит от нас.
Жаль, что дождь и что осенью жизнь без прикрас,
Жаль тех книг – я прочесть их когда-то хотел,
Жаль тех синих, теперь уже выцветших, глаз.