भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीगा भीगा मन डोल रहा / ममता किरण

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ममता किरण }} {{KKCatGeet}} <poem> भीगा भीगा मन डोल रहा इस आँगन …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीगा भीगा मन डोल रहा
इस आँगन से उस आँगन !

यादों की अंजुरी से फिसले
जाने कितने मीठे लम्हे
लम्हों में दादी नानी है
किस्सों की अजब कहानी है

उन गलियों में कितना कुछ है
मन खोज रहा है वो बचपन !

वो प्यारी तकरारें माँ से
वो झगड़े भाई बहनों के
उन झगड़ो का सोंधापन है
गूंजा गूंजा सा हर क्षण है

उन खट्टी मीठी यादों में
सुध बुध भूला है ये तन मन !

छुप छुप मिलने के वो मौके
लगते खुशबू के से झोंके
उन झोंकों में एक सिहरन है
मेहँदी का भी गीलापन है

उन मस्त हवाओं की सन सन
मन ढूंढ रहा है वो सावन !