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"भूख है तो सब्र कर / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ ।
  
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मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ|    <br><br>
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मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह <br>
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पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ ।
  
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क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ|  <br><br>
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लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ ।
  
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आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुआं| <br><br>
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इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो
आप के भी खून का रंग हो गया है सांवला| <br><br>
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जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ ।  
  
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दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुआं|  <br><br>
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उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ ।
  
दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो <br>
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इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात  
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ|  <br><br>
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अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।
 
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इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात <br>
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अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां|<br><br>
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18:45, 30 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ ।

मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह
ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ ।

गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ ।

क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ
लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ ।

आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को
आप के भी ख़ून का रंग हो गया है साँवला ।

इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो
जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ ।

दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो
उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ ।

इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ ।