भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूदृश्य-3 / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:20, 24 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धँसा है आसमान
पर्वत के सीने पर चट्टानों में
धब्बे हैं मटमैले
पानी का सतरंगा मुख दरका है
यादों का
झाँक रहा खुल पड़ता
परतों से
चट्टानी इच्छा का।