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:::वायुर्निलममृतमथेदम भस्मानतम शरीरम।<br>:::ॐ क्रतो स्मर कृत स्मर क्रतो स्मर कृत स्मर ॥१७॥<br>
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:::यह देह शेष हो अग्नि में, वायु में प्राण भी लीन हो,<br>:::जब पंचभौतिक तत्व मय, सब इंद्रियां भी विलीन हों,<br>:::तब यज्ञ मय आनंद घन, मुझको मेरे कृत कर्मों को,<br>:::कर ध्यान देना परम गति, करना प्रभो स्व धर्मों को॥ [१७]<br><br>
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