भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मधुकरी / कुबेरनाथ राय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 18 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुबेरनाथ राय |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौत की उन रस्सियों से
जीवन के एक सिर्फ सुखद क्षण की भीख माँगी थी।
हार के द्वार से साहस बटोर कर
सिर्फ एक पल की जीत माँगी थी।
छिन्नमस्ता अमामयी
कुहेलिका के नील आँचल से
एक किरण की फाँक माँगी थी।
माना कि ये सब चुप रहे
बेशील, आँखे बन्दकर, मुँह फेर
पर तुम भी तो आँख फेरने लगे
जब मैंने भीगे मन से
केवल पगधूलि माँगी थी।

[ कलकत्ता : मेकलौड हाउस, 1958 ]