भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यश मालवीय }} मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=यश मालवीय
+
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
}}  
+
|संग्रह=नीरजा / महादेवी वर्मा
 
+
}}
 
+
{{Template:KKAnthologyDiwali}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatGeet}}
 +
{{KKPrasiddhRachna}}
 +
<poem>
 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
 
 
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
 
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
 
 
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
 
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
 
  
 
सौरभ फैला विपुल धूप बन
 
सौरभ फैला विपुल धूप बन
 
 
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
 
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
 
 
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
 
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
 
 
तेरे जीवन का अणु गल-गल
 
तेरे जीवन का अणु गल-गल
 
 
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
 
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
 
  
 
तारे शीतल कोमल नूतन
 
तारे शीतल कोमल नूतन
 
 
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
 
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
 
 
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
 
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
 
 
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
 
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
 
 
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!
 
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!
 
  
 
जलते नभ में देख असंख्यक
 
जलते नभ में देख असंख्यक
 
 
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
 
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
 
 
जलमय सागर का उर जलता;
 
जलमय सागर का उर जलता;
 
 
विद्युत ले घिरता है बादल!
 
विद्युत ले घिरता है बादल!
 
 
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!
 
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!
 
  
 
द्रुम के अंग हरित कोमलतम
 
द्रुम के अंग हरित कोमलतम
 
 
ज्वाला को करते हृदयंगम
 
ज्वाला को करते हृदयंगम
 
 
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
 
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
 
 
बन्दी है तापों की हलचल;
 
बन्दी है तापों की हलचल;
 
 
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!
 
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!
 
  
 
मेरे निस्वासों से द्रुततर,
 
मेरे निस्वासों से द्रुततर,
 
 
सुभग न तू बुझने का भय कर।
 
सुभग न तू बुझने का भय कर।
 
 
मैं अंचल की ओट किये हूँ!
 
मैं अंचल की ओट किये हूँ!
 
 
अपनी मृदु पलकों से चंचल
 
अपनी मृदु पलकों से चंचल
 
 
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
 
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
 
 
  
 
सीमा ही लघुता का बन्धन
 
सीमा ही लघुता का बन्धन
 
 
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन
 
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन
 
 
मैं दृग के अक्षय कोषों से-
 
मैं दृग के अक्षय कोषों से-
 
 
तुझमें भरती हूँ आँसू-जल!
 
तुझमें भरती हूँ आँसू-जल!
 
 
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
 
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
 
 
  
 
तुम असीम तेरा प्रकाश चिर
 
तुम असीम तेरा प्रकाश चिर
 
 
खेलेंगे नव खेल निरन्तर,
 
खेलेंगे नव खेल निरन्तर,
 
 
तम के अणु-अणु में विद्युत-सा
 
तम के अणु-अणु में विद्युत-सा
 
 
अमिट चित्र अंकित करता चल,
 
अमिट चित्र अंकित करता चल,
 
 
सरल-सरल मेरे दीपक जल!
 
सरल-सरल मेरे दीपक जल!
 
 
  
 
तू जल-जल जितना होता क्षय;
 
तू जल-जल जितना होता क्षय;
 
 
यह समीप आता छलनामय;
 
यह समीप आता छलनामय;
 
 
मधुर मिलन में मिट जाना तू
 
मधुर मिलन में मिट जाना तू
 
 
उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल!
 
उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल!
 
 
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!
 
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!
 
 
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
 
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
 +
</poem>

19:49, 6 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!

सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!

तारे शीतल कोमल नूतन
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!

जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!

द्रुम के अंग हरित कोमलतम
ज्वाला को करते हृदयंगम
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
बन्दी है तापों की हलचल;
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!

मेरे निस्वासों से द्रुततर,
सुभग न तू बुझने का भय कर।
मैं अंचल की ओट किये हूँ!
अपनी मृदु पलकों से चंचल
सहज-सहज मेरे दीपक जल!

सीमा ही लघुता का बन्धन
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन
मैं दृग के अक्षय कोषों से-
तुझमें भरती हूँ आँसू-जल!
सहज-सहज मेरे दीपक जल!

तुम असीम तेरा प्रकाश चिर
खेलेंगे नव खेल निरन्तर,
तम के अणु-अणु में विद्युत-सा
अमिट चित्र अंकित करता चल,
सरल-सरल मेरे दीपक जल!

तू जल-जल जितना होता क्षय;
यह समीप आता छलनामय;
मधुर मिलन में मिट जाना तू
उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल!
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!
प्रियतम का पथ आलोकित कर!