भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मनस्थिति-2 / लोग ही चुनेंगे रंग
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> क…)
कोई देखे तो हँसेगा
जैसे शून्य की कहानी
सुन मैं हँसा
बाहर घसियारों की मशीनें
चुनाव का शोर
मैदान में खेल
शोर आता दिमागी नसें कुतरता हुआ भीतर
शून्य की तकलीफ अपने वजूद पर खतरे की
मुझे सुनाई जैसे सुनाई खुद से हो
जाने कौन हँसा
मैं या शून्य.