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मन के भोर / रामकृष्ण

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टह-टह जे इंजोरिआ हल
कन्ने ऊ पराएल हे,
सपना के सजल बसती
काहे तो नुकाएल हे॥
असरा के समुन्नर में
जिनगी के लहर उमगे।
कुछ फूल खिले मनके
कुछ घाम उगे, लहके॥
आखर जे कढ़ल अनकल
कनिआँ सन लजाएल हे॥
बादर के करेजा में
अनके, मलका मलके,
जे गीत बुनल महके
मनफेर अरथ खनके॥
अब लालो परसबन्ना
काहे तो सेराएल हे॥
फिनसे अमरइआ के
छाती में दरद उगलो,
पीअर फूलल सरसो-
देहे, हरदी लगलो॥
अलता में, मेंहदी में
ऊ साँसो समाएल हे॥