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"मरते-मरते न कभी आक़िलो-फ़रज़ाना बने / असग़र गोण्डवी" के अवतरणों में अंतर
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होश रखता हो जो इन्सान तो दिवाना बने॥ | होश रखता हो जो इन्सान तो दिवाना बने॥ | ||
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ज़र्रे जो ख़ाक से उट्ठे, वो सनमख़ाना बने॥ | ज़र्रे जो ख़ाक से उट्ठे, वो सनमख़ाना बने॥ | ||
23:20, 24 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
मरते-मरते न कभी आक़िलो-फ़रज़ाना बने।
होश रखता हो जो इन्सान तो दिवाना बने॥
परतबे-रुख़ के करिश्मे थे सरे राहगुज़र।
ज़र्रे जो ख़ाक से उट्ठे, वो सनमख़ाना बने॥
कारफ़रमा है फ़क़त हुस्न का नैरंगे-कमाल।
चाहे वो शमअ़ बने, चाहे वो परवाना बने॥