भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मरहम / एम० के० मधु

Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 11 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम० के० मधु |संग्रह= }} <Poem> तुम छूते हो दुखता है लग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम छूते हो
दुखता है

लगाते हो
जब मरहम
घाव पर मेरे

मुझे
तुम्हारी पहचान नहीं
पर मेरे घावों को
तुम्हारी उँगलियों की पहचान है ।