भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मरहम / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
तुम छूते हो
दुखता है
लगाते हो
जब मरहम
घाव पर मेरे
मुझे
तुम्हारी पहचान नहीं
पर मेरे घावों को
तुम्हारी उँगलियों की पहचान है ।